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जालौन जिले के 10 प्रमुख ऐतिहासिक और पर्यटन स्थल

जालौन जिले के प्रमुख ऐतिहासिक पर्यटन स्थल

जालौन जिला उत्तर प्रदेश के दक्षिण-पश्चिम में स्थित एक ऐतिहासिक स्थान है, जो मुख्य रूप से अपने ऐतिहासिक और धार्मिक स्मारकों के लिए प्रसिद्ध है। इस जगह ने ऐतिहासिक रूप से कई उतार-चढ़ाव देखे हैं, जिनके पीछे एक इतिहास है। एक बहुत प्रसिद्ध ऋषि जलवान थे, जिनके नाम पर इस जिले का नाम जालौन पड़ा। इसी जिले में ‘आल्हा उदल’ के मामा भी रहते थे। जिसे “माहिल की नगरी” उरई कहा जाता है। यहां पर प्रसिद्ध माहिल  का तालाब भी स्थित है।  यह जालौन का जिला मुख्यालय है। कालपी इस जिले का सबसे बड़ा और सबसे पुराना शहर है। इस क्षेत्र का सबसे पुराना पारंपरिक शासक ययाति था।  जिसका उल्लेख पुराणों और महाभारत में सम्राट और एक महान विजेता तथा महर्षि वेद व्यास के जन्मस्थान के रूप में मिलता है। उन्होंने महाभारत नामक पौराणिक ग्रन्थ लिखा था। यमुना, बेतवा, पहूज तीन खूबसूरत नदियों से घिरा जालौन जिला सड़क और रेल द्वारा राज्य के मुख्य शहरों, आगरा (300 किमी), कानपुर (105 किमी), झांसी (106 किमी) से अच्छी तरह से जुड़ा हुआ है। निकटतम हवाई अड्डा जालौन जिले से 105 किमी दूर कानपुर है। राष्ट्रीय राजमार्ग संख्या-25 जालौन जिले को सीधे कानपुर और झांसी से जोड़ता है।

यहाँ के प्रमुख ऐतिहासिक स्थल हैं-

  1. रामपुरा किला
  2. जगमनपुर किला
  3. लंका मीनार
  4. चौरासी गुंबद
  5. बैरागढ़ शारदा माता मंदिर धाम
  6. कोंच की रामलीला
  7. साला घाट और जागेश्वर मंदिर
  8. पवित्र संगम पचनदा धाम
  9. वेद व्यास मंदिर
  10. सूर्य मंदिर

1. रामपुरा का किला

रामपुरा किला

यह किला जालौन जिले के रामपुरा प्रखंड में स्थित है। जो जिला मुख्यालय उरई से 55 किमी दूर है। यह 15 वीं शताब्दी में बनवाया गया था । जिसे राजपूत राजाओं के कछवाहा वंश ने बनवाया है। यह किला ईंटों और चूना पत्थर से बना है। पहूज नदी के किनारे बने इस किले में महिलाओं और पुरुषों के लिए अलग-अलग कमरे हैं, जिनकी कुल संख्या 100 है। बीहड़ में बने होने के कारण यह किला एक खाई से घिरा हुआ है। इस किले से ऊबड़-खाबड़ खड्डे बेहद खूबसूरत लगते हैं। जिसकी वजह से यह स्थान पर्यटकों के लिए बेहद रोमांचकारी हो जाता है। इस किले में अस्तबल, गैरेज, क्वार्टर, कुएं और मंदिर बने हैं। 

2. जगम्मनपुर किला

जगमनपुर किला

यह किला भी रामपुरा प्रखंड के जगम्मनपुर गांव में स्थित है, जो रामपुरा गांव से 25 किमी दूर है। इस किले का निर्माण 1593 में जगमन शाह ने करवाया था। कहा जाता है कि किले की नींव रखते समय संत तुलसीदास यहां मौजूद थे और जिन्होंने राजा को ‘एक मुखी रुद्राक्ष’ और एक ‘दक्षिणावर्ती शंख’ और ‘लक्ष्मीनारायण वटी’ भेंट की थी। उन्हें आज भी मंदिर में रखा जाता है और पूजा की जाती है। हर साल राजा द्वारा एक उत्सव का आयोजन किया जाता है जिसमें जनता भी भाग लेती है। यह त्योहार अक्टूबर में आयोजित किया जाता है।इसके साथ ही गांव में मेले का आयोजन किया जाता है। लोग दूर-दूर से किले और उसके त्योहार को देखने के लिए आते हैं।

3. लंका मीनार

लंका मीनार

यह जालौन जिले के कालपी शहर में स्थित है। जो जालौन जिले का प्रमुख नगर है। रावण को समर्पित यहां एक लंका मीनार है। इसके अंदर रावण को अपने पूरे परिवार के साथ चित्रों के माध्यम दर्शाया गया है। इसे 1875 में स्वर्गीय मथुरा प्रसाद ने बनवाया था। मथुरा प्रसाद ने इस लंका को रावण की याद में बनवाया था। यह लंका एक सुंदर मीनार है। इस लंका को बनवाने वाले मथुरा प्रसाद जी रामलीला में रावण की भूमिका निभाते थे। जहाँ से उन्हें यह मीनार बनवाने की प्रेरणा मिली। यह टावर करीब 210 मीटर ऊंचा है। इस अद्भुत संरचना को बनाने में 20 साल लगे, जिसे बनाने में उड़द, सीप, दाल, कौड़ी का इस्तेमाल किया गया है। लंका मीनार पर रावण के भाई कुंभकर्ण और मेघनाथ की विशाल मूर्तियाँ बनाई गई हैं। कुभकर्ण की मूर्ति 100 फीट और मेघनाथ की 65 फीट की मूर्ति यहां मौजूद है। इसके अलावा यहां भगवान शिव और चित्रगुप्त को भी बनाया गया है। परिसर में एक 180 फीट लम्बी नाग देवता की मूर्ति भी स्थित है। जो 95 फीट के नागिन गेट पर बनी है। नाग पंचमी के दिन यहां भव्य मेले का आयोजन किया जाता है। इसके साथ ही दंगल का भी आयोजन किया जाता है। टावर के शीर्ष पर पहुंचने के लिए सात फेरे से गुजरना पड़ता है। ये सात फेरे पति-पत्नी के सात फेरे माने जाते हैं। 

4. चौरासी गुंबद

चौरासी गुंबद

यह भी कालपी शहर में स्थित है। इस भवन का निर्माण १५-१६वीं शताब्दी में किया गया था। इसे लोदी शाह का मकबरा भी कहा जाता है। इस प्राचीन इमारत में चौरासी द्वार हैं। यह प्राचीन काल में बौद्ध विश्वविद्यालय भी रहा है। इस बात का जिक्र चीनी यात्री फाह्यान ने अपनी भारत यात्रा पर लिखी एक किताब में भी किया है। इसमें चौरासी द्वार मेहराब हैं। पूरी इमारत को शतरंज की बिसात के समान चौकोर आकार में बांटा गया है। इमारत में 60 फीट ऊंचा गुंबद है। प्राचीन काल में कालपी को कालप्रिया नगरी के नाम से जाना जाता था। फिर, शहर का नाम संक्षिप्त रूप से कालपी रखा गया। यह कल्पनाप्रियागरी एक प्राचीन भारतीय शहर था। 

5. बैरागढ़ शारदा माता मंदिर धाम

बैरागढ़ शारदा माता मंदिर धाम

यह एट शहर के पास बैरागढ़ में स्थित है। यह बहुत ही सुंदर और प्रसिद्ध मंदिर है। यह मंदिर आल्हा उदल के समय का है। इस मंदिर में आल्हा ने वैराग्य प्राप्त कर सन्यास लिया था। जिससे इसका नाम बैरागढ़ पड़ा। इस मंदिर में आल्हा की सांग (एक प्रकार का हथियार) गड़ी है, जो बहुत भारी है। माता शारदा का मंदिर साधारण नक्काशी से बना है। इस मंदिर के पीछे एक तालाब है। मान्यता है कि इसमें स्नान करने से चर्म रोग दूर हो जाते हैं। ऐसा कहा जाता है कि देवी शारदा दिन में कई बार रूप बदलती हैं। यहां पर ज्ञान की देवी सरस्वती माता शारदा के रूप में विराजमान हैं। यहाँ देवी माया को अष्टकोणीय सफेद पत्थर से बनाया गया है। किंवदंतियों के अनुसार मां शारदा के शक्तिपीठ की स्थापना ग्यारहवीं शताब्दी में चंदेल काल के राजा टोडलमल ने की थी। पूरे देश में मां शारदा के केवल दो शक्तिपीठ हैं, जिनमें एक जालौन जिले के बैरागढ़ में और दूसरा मध्यप्रदेश के सतना जिले के मैहर में है। 

6. कोंच की रामलीला

कोंच की रामलीला

यह कोंच में आयोजित की जाती है। कोंच जालौन जिले का एक छोटा सा शहर है, जो उरई से 30 किमी दूर है। यहां की रामलीला 164 साल पुरानी है। यहां की रामलीला की चर्चा दूर-दूर तक की जाती है। इस रामलीला का मंचन मंच पर नहीं बल्कि मैदान में किया जाता है। किसी भी युद्ध को यहाँ मंच पर नहीं  बल्कि मैदान में जीवंत किया जाता है। यहां की रामलीला को “लिम्का बुक ऑफ वर्ल्ड रिकॉर्ड” में भी शामिल किया गया है। अयोध्या और बनारस के बाद मैदान में होने वाली यह सबसे बड़ी रामलीला है। इसी प्रसिद्धि के कारण कोंच की रामलीला एशिया में सबसे अधिक मानी जाती है। राम, लक्ष्मण, भरत, शत्रुघ्न का अभिनय जब तक रामलीला चलती है केवल ब्राह्मण जाति के बच्चे ही कर सकते हैं। कई मर्यादाओं की प्रतिज्ञा के तहत उन्हें रामलीला समिति के संरक्षण में परिवार से अलग होकर रहना पड़ता है। कोच की रामलीला पर  शोध भी हो चुके हैं। जिसे टोबैगो और त्रिनिदाद के प्रधानमंत्री की भतीजी इंद्राणी रामदास ने किया था। 

7. साला घाट और जागेश्वर मंदिर

साला घाट और जागेश्वर मंदिर

यह घाट और मंदिर कोंच प्रखंड के साला गांव में हैं। यह गांव कोंच शहर से 18 किमी दूर स्थित है। एट और कोटरा के बीच स्थित बेतवा नदी पर प्राचीन शिव मंदिर, जागेश्वर मंदिर और साला घाट बना है। यह घाट जिसके नुकीले और चमकीले पत्थर बेहद आकर्षक लगते हैं। जब नदी की धाराएं पत्थरों से टकराती हैं तो नजारा बेहद मनमोहक होता है। डीकाचल पर्वत जागेश्वर मंदिर के पास स्थित है। ऐसा कहा जाता है कि हिरण्यकश्यप ने अपने पुत्र प्रह्लाद को इस पर्वत से नीचे फेंक दिया था। जिसके निशान आज भी मौजूद हैं। साला घाट के पास पथरौला घाट है। घाटों और पास में बहने वाली बेतवा नदी के कारण यह मंदिर और भी खूबसूरत लगता है। विवाह पंचमी को जागेश्वर धाम में मेला लगता है। उस दिन यहां भगवान राम और माता सीता का विवाह किया जाता है। बेतवा नदी के किनारे बने जागेश्वर धाम में भगवान शंकर के दर्शन करके और यहाँ का भव्य नजारा देखकर लोग हैरान रह जाते हैं। मुकर्रम बाबा की दरगाह मंदिर के पास नदी में बनी है। यहां हिंदू और मुसलमान दोनों चादर चढ़ाते हैं और मन्नत मांगते हैं। 

8. पवित्र संगम पचनदा धाम

पवित्र संगम पचनदा धाम

यह जालौन, इटावा और औरैया जिलों की सीमा पर है। उरई से इसकी दूरी 64 किमी है। पांच नदियों के संगम के कारण इसका नाम पचनदा पड़ा। यह दुनिया का एकमात्र स्थान है, जहां पांच नदियां यमुना, चंबल, कावरी, सिंध, पहुज नदियां मिलती हैं। यह स्थान महाभारत काल से प्रसिद्ध है। कहा जाता है कि इसी स्थान पर माता माहेश्वरी की पूजा करने से भगवान विष्णु को सुदर्शन चक्र मिला था। महाभारत काल में पांडवों ने यहां काफी समय बिताया था, जिसके प्रमाण आज भी मौजूद हैं। यहीं पर भगवान कालेश्वर ने प्रकट होकर पांडवों को दर्शन दिए थे। यहां 800 साल पुराना महाकालेश्वर मंदिर है, जहां हर साल मेला लगता है। इसे बाबा मुकुंदवन की तपोस्थली भी कहा जाता है, जहां तुलसीदास जी ने काफी समय बिताया। यह पौराणिक और धार्मिक महत्व का सबसे दुर्लभ स्थल है। प्राकृतिक सौन्दर्य की दृष्टि से पचनदा देश के कुछ चुनिंदा स्थानों में से एक माना जाता है। भरेही का ऐतिहासिक किला भी इसी जगह के पास स्थित है। जहां से पचनदा का नजारा बेहद खूबसूरत लगता है। यह स्थान डॉल्फ़िन का प्रमुख प्रजनन केंद्र भी है। 

9. वेद व्यास मंदिर

वेद व्यास मंदिर

यह कालपी शहर के पास स्थित है। यह स्थान यमुना नदी के किनारे एक पहाड़ी पर स्थित है। इसे भगवान वेद व्यास का जन्मस्थान भी कहा जाता है। यह मंदिर बहुत प्राचीन है। कहा जाता है कि भगवान वेद व्यास का बचपन यहीं बीता था। इस मंदिर में एक नीम का पेड़ है, जिसकी विशेषता यह है कि इस पेड़ की तना और शाखाएं हाथी के सिर के समान मुड़ जाती हैं। यह नीम का पेड़ भी बहुत प्राचीन है। इस पेड़ की शाखाओं और तनों को कभी नुकसान नहीं पहुंचाया जाता और न ही काटा जाता है। इस पेड़ को बहुत पवित्र माना जाता है। मुख्य मंदिर के साथ ही इस पेड़ की भी पूजा की जाती है। यह नीम का पेड़ भगवान गणेश का रूप माना जाता है। जिन्होंने महाभारत लिखने में वेद व्यास जी की मदद की थी। इस मंदिर के पास वेद व्यास जी के बचपन से जुड़ा एक और मंदिर बनाया गया है। जो वेद व्यास जी के बाल रूप से संबंध होने के कारण बाल व्यास मंदिर के नाम से प्रसिद्ध है। इस मंदिर के अंदर वेद व्यास जी के बाल रूप से जुड़े रूपों को दर्शाया गया है। यहां वेद व्यास जी से जुड़ा एक संग्रहालय भी है। 

10. सूर्य मंदिर

सूर्य मंदिर

यह मंदिर कालपी के मदरा लालपुर गांव में यमुना नदी के तट पर बना है। देश में एक सूर्य मंदिर ओडिशा के कोणार्क में, दूसरा पाकिस्तान के मुल्तान में और तीसरा कालपी के इसी स्थान पर बना है। सैकड़ो साल पुराने इस सूर्य मंदिर की संरचना बिल्कुल कोणार्क के सूर्य मंदिर के समान है। ऐसा माना जाता है कि इस मंदिर की स्थापना श्री कृष्ण के पोते सांबा ने की थी। मंदिर के पास एक सूर्य कुंड भी है। विश्व प्रसिद्ध ‘सूर्य सिद्धांत’ महान ज्योतिषी बराहमिहिर द्वारा इसी स्थान पर प्रतिपादित किया गया था। मान्यता है कि रविवार के दिन यहां सूर्य की उपासना करने से कुष्ठ रोगी ठीक हो जाते हैं। कन्नौज के इतिहास पर आधारित ग्रंथ ‘कन्याकुब्ज महात्म्य’ में लिखा है कि ऋषि दुर्वाशा के श्राप से सांबा को कोढ़ हो गया था। देवताओं की सलाह पर कन्नौज राज्य के मकरंज शहर में स्थित सूर्यकुंड में स्नान कर सांबा को श्राप से मुक्ति मिली। जिसके बाद उन्होंने कालप्रियनाथ सूर्यदेव का मंदिर बनवाया। जिसके कारण इसका नाम कालप्रिया पड़ा और जो बाद में बदलकर कालपी हो गया। यह मंदिर नागर शैली में बना है। कालपी का यह सूर्य मंदिर चूने और लाल पत्थर से बना है।

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